हे! शक्ति शांति के चिर प्रतीक,
समृद्धि गति के संवाहक,
हे! न्याय दंड पर जड़े अडिग,
स्वतंत्र हिंद के संभाषाक।
अगणित बलिदानों से निर्मित,
अगणित मुस्कानों के कारक,
हे! कर्म और पुरुषार्थ प्रखर,
भारत की अस्मिता के धारक।
तुम नहीं हो केवल ध्वज अपितु,
तुम जन गण मन का मान भी हो,
तुम ही से सब, तुम ही सब कुछ,
तुम पूरा हिंदुस्तान भी हो।
तुम से गंगा, तुम से जमुना,
तुम से ही हिमालय है प्रचंड,
तुम से केसरिया काश्मीर,
तुम से दक्षिण के तट अखंड।
हर भारतवासी के कर में,
तुम हो काशी के हर हर में,
मथुरा की राधे राधे में,
चट्टानी अटल इरादे में।
तुम अमृतसर के अमृत में,
पंजाब के पांचों नीर में हो,
हरियाणा की हरियाली में,
गुजरात के अविचल धीर में हो।
तुम अवध के जय श्रीराम में हो,
संकट मोचन हनुमान में हो,
सरयू के जल की कल जल में,
तुम काशी के विश्राम में हो।
तुम गौरवमय, तुम अति विराट,
तुम आदि मध्य अवसान भी हो,
तुम ही से सब, तुम ही सब कुछ,
तुम पूरा हिंदुस्तान भी हो।
राणा प्रताप का गौरव तुम,
तुम पृथ्वीराज का अटल शौर्य,
तुम छत्रसाल के बल स्वरूप,
तुम गुप्त वंश के शीर्ष मौर्य।
गीता का दैवी ज्ञान भी तुम,
हर मर्यादा का मान भी तुम,
रामायण का विधान भी तुम,
गुरुओं का ग्रंथ महान भी तुम।
तुम ही गांधी की लाठी में,
तुम चंद्र बोस की काठी में,
तुम शेखर की कुर्बानी में,
तुम भगत की वीर जवानी में।
तुम ही झांसी की रानी में,
तुम शिवा वीर तूफानी में,
तुम ही अशफ़ाक ओ बिस्मिल में,
तुम खुदीराम बलिदानी में।
तुम क्या हो कैसे कहा जाए?
तुम तो हम सब के प्राण भी हो,
तुम ही से सब, तुम ही सब कुछ,
तुम पूरा हिंदुस्तान भी हो।
हम सबका ये ही गौरव है,
हम छांह तुम्हारी पा जाएं,
ये जीवन है इस आस में बस,
कुछ काम तुम्हारे आ जाए।
तुम ही हो हमारा परम लक्ष्य,
तुम ही उसका संधान भी हो,
तुम ही से सब, तुम ही सब कुछ,
तुम पूरा हिंदुस्तान ही हो।
- अंशुल तिवारी